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ए॒ष प्र॒त्नेन॒ जन्म॑ना दे॒वो दे॒वेभ्य॑: सु॒तः । हरि॑: प॒वित्रे॑ अर्षति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa pratnena janmanā devo devebhyaḥ sutaḥ | hariḥ pavitre arṣati ||

पद पाठ

ए॒षः । प्र॒त्नेन॑ । जन्म॑ना । दे॒वः । दे॒वेभ्यः॑ । सु॒तः । हरिः॑ । प॒वित्रे॑ । अ॒र्ष॒ति॒ ॥ ९.३.९

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:3» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एष देवः) यह परमात्मा (प्रत्नेन) अनादि काल से “प्रत्नमिति पुराणनामसु पठितम्” निरु० ३।२०।२७ (जन्मना) आविर्भाव से (देवः) उक्तदेव (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (सुतः) सुप्रसिद्ध (हरिः) सब दुःखों का हरनेवाला (पवित्रे) मनुष्य के पवित्र हृदय में (अर्षति) प्रकट होता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अपने अन्तःकरण को पवित्र करते हैं और परमात्मा के निष्पापादि भावों को धारण करते हैं, उनके हृदय में परमात्मा आकर प्रकट होता है ॥ जो मन्त्र में जन्म शब्द आया है, इसके अर्थ जन्मधारण के नहीं किन्तु ‘जनी प्रादुर्भावे’ धातु से मनिन् प्रत्यय करने से जन्म शब्द सिद्ध होता है, जिसके अर्थ आविभार्व के हैं, किसी उत्पत्तिविशेष के नहीं। इसी अभिप्राय से मन्त्र में प्रत्न शब्द को विशेषण देकर जन्म का वर्णन किया है, जिसके अर्थ अनादिसिद्ध आविर्भाव के हैं, न कि उत्पत्ति के ॥ तात्पर्य यह है कि वह अनादिसिद्ध परमात्मा निष्पाप आत्माओं में प्रकट होता है ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) अयं परमात्मा (देवः) (प्रत्नेन) अनादिकालेन (जन्मना) आविर्भावेन (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (सुतः) सुप्रसिद्धः (हरिः) सर्वदुःखविनाशकः (पवित्रे) मनुष्यस्य पवित्रहृदये (अर्षति) प्रकटति ॥९॥